मंगलवार, 30 नवंबर 2010

आओ चलें

अब तपता मौसम
तपी हुई दोपहर
मुझे तय करना है लम्बा सफर
आओं चले साथ साथ
कन्धे से कनधा मिला
और हाथो मे हाथ
मुश्किल है ?
खैर रोको नही मुझे अब मैं चलता हु
मुबारक हो तुझे उपर तमतमाते हुए सूरज का चेहरा
नीचे अलाव सी रेत की लहरें
मुझे रोको नहीं
खड़े होने दो वहीं
उसी अलाव सी
तट भूमि पर देखने दो
जलते सूरज को
होने दो नाश
आंखो का अंधेरा
सपनों से संजोये
चेहरा तुम्हारा

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